गणेश दमनक चतुर्थी Ganesh Damnak Chaturthi Vrat Katha Poojan Vidhi: गणेश दमनक चतुर्थी हिंदू धर्म में नया वर्ष चैत्र मास से प्रारंभ होता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश दमनक चतुर्थी मनाई जाती है। गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है। गणेश जी भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र हैं इनके कई नाम है जैसे- गणपति, गजानन, पार्वती नंदन, एकदंत, गौरी सुमन आदि। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य की उपाधि दी गई है। किसी भी प्रकार की पूजा में या कार्य में सबसे पहले इनका ध्यान और पूजा की जाती है उसके बाद ही कार्य या पूजा का आरंभ होता है।
गणेश दमनक चतुर्थी Ganesh Damnak Chaturthi Vrat Katha Poojan Vidhi:

गणेश दमनक चतुर्थी व्रत Ganesh Damnak Chaturthi Vrat Katha Poojan Vidhi
भविष्य पुराण के अनुसार जब भी कोई व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़े और उसे मुसीबतों से घिरा महसूस होने लगे उस स्थिति में गणेश दमनक चतुर्थी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इसके प्रभाव से लोक परलोक दोनों स्थानों पर व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है व्रत रखने वाले व्यक्ति के सभी दुखों का अंत होता है धर्म में आस्था बढ़ती है और व्रत रखने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है धन की इच्छा रखने वाले को धन की प्राप्ति होती है पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र की प्राप्ति होती और रोगी व्यक्ति को आरोग्य मिलता है।
गणेश दमनक चतुर्थी व्रत का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और चंद्रोदय तक व्रत रखकर चंद्र देव को अर्घ देकर इसका समापन होता है, अर्घ्य देते वक्त भगवान गणेश का ध्यान करें और उनसे कहे कि हमारे सभी कष्टों का हरण करें और हमारी सभी मनोकामनाओ की पूर्ति करें।
गणेश दमनक चतुर्थी व्रत के लिए आवश्यक सामग्री
गणेश दमनक चतुर्थी का व्रत करने के लिए आपको अधिक सामिग्री की आवश्यकता नहीं होती, यह व्रत बड़ी ही सरलता से किया जा सकता है. अधिकतर सामिग्री आपको अपने घर में हमेशा ही मिलेगी. चलिए अब गणेश दमनक व्रत के लिए आवश्यक सामग्री की लिस्ट देख लीजिये।
- गणेश जी की फोटो या मूर्ति
- लाल या पीले रंग का कपड़ा
- धूप
- धूप बत्ती
- कपूर
- 5 पान के पत्ते
- सुपारी
- इलायची
- लौंग
- सिन्दूर
- चावल
- गंगाजल
- प्रसाद के लिए मोदक या तो लड्डू या पेडे
- फल
गणेश दमनक चतुर्थी व्रत की विधि
गणेश दमनक चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा करें और भगवान गणेश जी का ध्यान करें और व्रत रखने का संकल्प लेकर व्रत का आरंभ करें पूरे दिन भगवान गणेश जी का ध्यान करें और शाम को चंद्रमा निकलने के बाद पूजा प्रारंभ करें पूजा के लिए सबसे पहले चौक बनाए फिर उसके ऊपर चौकी रखकर उस पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाए फिर उसके ऊपर गणेश जी की मूर्ति या फोटो को स्थापित करें,चौक के ऊपर थोड़े से चावल या गेहू रखें तांबे के कलश में जल भरकर उस पर रखे उसके ऊपर एक दिया जलाएं गणेशजी को सिंदूर लगाए चावल चढ़ाएं और जनेऊ पहनाए फूल माला आदि चढ़ाकर उन्हें मोदक का भोग लगाए फल चढ़ाएं फिर पांचों पान के पत्तों में लॉन्ग इलायची सुपारी रखकर गणेश जी को चढ़ाएं धूपबत्ती लगाएं और फिर उसके बाद गणेश दमनक चतुर्थी की व्रत कथा का आरंभ करें।
गणेश दमनक चतुर्थी व्रत कथा.
एक गांव में एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और अंधी थी। उसके एक बेटा और बहु थी। वह बुढ़िया गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी उसकी पूजा से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और बुढ़िया मां से बोले बुढ़िया मां तू जो चाहे वह मांग ले बुढ़िया बोली मुझे तो मांगना ही नहीं आता है तो मैं आपसे कैसे मांगू और क्या मांगू गणेश जी बोले अपने बेटा और बहू से पूछ कर मांग लो।
तब बुढ़िया मां अपने बेटे और बहू के पास गई, और बेटे से कहा कि गणेश जी मेरे इतने सालों की पूजा से प्रसन्न होकर उन्होंने आज मुझे दर्शन दिए हैं और कहा है कि मुझसे एक वरदान मांग लो मुझे कुछ मांगना नहीं आता है तो उन्होंने अपने बेटे और बहू से पूछो और मांग लो तो मैं तुमसे पूछने आई हूं कि मैं क्या मांगू बेटे ने कहा, की मां हम लोग बहुत गरीब हैं इसलिए तुम उनसे धन मांग लो, फिर बुढ़िया माँ बहू के पास गई बहु से पूछा मैं क्या मांगू गणेश जी ने मुझे वरदान मांगने के लिए कहा है तो बहु बोली मां तुम अपने लिए नाती मांग लो, तब बुढ़िया माँ ने सोचा यह सब तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं।
फिर बुढ़िया मां ने जा कर पड़ोसियों को बताया और उनसे पूछा की मैं क्या मांगू, पड़ोसियों ने कहा बुढ़िया मां तू तो थोड़े दिन ही जियेगी क्यों दूसरों के लिए धन और नाती मांगेगी तू अपनी आंखों के लिए रोशनी मांग ले जिससे कि तेरी जिंदगी में बचे हुए दिन में अच्छे से गुजर जाएंगे।
बुढ़िया मां सोचती विचारती रही अगले दिन गणेश जी आए और बुढ़िया मां से पूछा कि तुमने कुछ सोचा कि तुम्हें क्या मांगना है इस पर बुढ़िया माँ बोली यदि आप मुझ पर प्रसन्न है, तो मुझे 9 करोड़ की माया दे, निरोगी काया दे, अमर सुहाग दे, आंखों की रोशनी दे, नाती दे पोता दें, और सब परिवार को सुख दे, और अंत में मुझे मोक्ष दें। यह सब सुनकर गणेश जी बोले बुढ़िया माई तूने तो हमें आज ठग ही लिया। फिर भी जो तू ने मांगा है वचन के अनुसार मुझे देना तो पड़ेगा ही, फिर गणेश जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए।
उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सब उसको मिल गया। उसके घर में खुशी की लहर उठी। उसके बेटे को माया मिली, उसकी बहू को पुत्र की प्राप्ति हुई, उसे अपनी आँखों की रोशनी वापस मिल गई । इसी प्रकार गणेश दमनक चतुर्थी का व्रत करने वाले हर व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।
बोलो गणेश जी महाराज की जय।
गणेश दमनक चतुर्थी से जुडी एक और अन्य कथा
प्राचीन समय में एक राजा थे। उनके दो रानियां थी और दोनों के एक-एक पुत्र था। एक पुत्र का नाम गणेश और दूसरे पुत्र का नाम दमनक था। गणेश जब अपनी ननिहाल जाया करता था, तब उसके ननिहाल में उसके मामा मामी उसकी खूब खातिरदारी किया करते थे, और दमनक जब भी अपनी ननिहाल जाया करता था तब उसके मामा मामी उससे घर का काम करवाते थे, और किसी भी काम में कमी रह जाने पर उसे मारते पीटते भी थे।
जब दोनों भाई अपने – अपने घर आते थे, तब गणेश अपनी ननिहाल से खूब मिठाइयां और सामान लाया करते थे, जबकि दमनक अपनी ननिहाल से खाली हाथ आया करता था। गणेश अपने ननिहाल से आकर अपने मामा मामी की तारीफ किया करता था और वही दमनक चुपचाप ही रह जाया करता था।
समय बीतता गया और दोनों बड़े हुए कुछ ही दिनों में दोनों का विवाह हुआ और घर मे दोनों की बहुए भी आ गई। गणेश जब भी अपनी ससुराल जाया करता था, तो उसके ससुराल वाले उसके लिए अलग से कमरा सजाया करते थे और उसकी खूब खातिरदारी किया करते थे और वही दमनक जब अपनी ससुराल जाया करता था, तो उसके ससुराल वाले उस पर ध्यान नहीं देते थे और उसे बहाने करके उसे घुड़साल में सुलाया करते थे और खुद आराम से बिस्तर पर सोया करते थे। गणेश जब भी अपनी ससुराल से आया करता था तो खूब दान दहेज लेकर आया करता था और दमनक खाली हाथ आया करता था।
यह सब एक बुढ़िया देखती रहती थी। एक शाम की संध्या को भगवान शंकर और माता पार्वती संध्या की फेरी और जगत की चिंता का समाधान करने के लिए निकले। बुढ़िया माई ने उन्हें देखा तो अपने हाथ जोड़े फिर गणेश और दमनक का किस्सा उन्हें सुनाया और हाथ जोड़कर उनसे पूछा कि ऐसा क्या कारण है कि दमनक को अपनी ससुराल और ननिहाल दोनों जगह अपमान मिलता है ,और गणेश को खुशामदी मिलती है।
शंकर जी ने ध्यान लगाया और देखा फिर बताया कि गणेश ने पिछले जन्म में अपने ननिहाल और मामा मामी का जो भी लिया उनकी संतान को लौटा कर आया था। और ससुराल से जो भी लिया वह साले और सलहज्ज की संतान को लौटा कर आया था। इसीलिए इस जन्म में भी उसकी अपनी ससुराल और ननिहाल दोनों जगह पर खुशामद होती है। और वही दमनक अपने पिछले जन्म में ननिहाल और ससुराल से लेकर आया जरूर करता था परंतु उन्हें वापस नहीं किया। इसीलिए इस जन्म में दमनक की दोनों ही जगह पर खुशामद नही होती है, और उसे दोनो जगह पर अपमान झेलना पड़ता है।
इसीलिए हमेशा याद रखना चाहिए कि भाई से खाने पर भतीजे को और मामा का खाने पर मामा की संतान को लौटा देना चाहिए ससुराल में खाने पर साले की संतान को लौटा देना चाहिए। जिसका जो भी खाया है उसे उसका लौटा अवश्य देना चाहिए। इससे हम पर किसी का भार नही रहता है और जीवन मे कष्टो का सामना नही करना पड़ता है जीवन सुखमय व्यतीत होता है।
Waooooo v nice article Saumya Tiwari
Interesting facts about Ganesh Damnak chaturthi in simple words.